छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति को मिली वैश्विक पहचान
डॉ. ओमप्रकाश डहरिया
संस्कृति से लोग जुड़ते हैं और लोगों से संस्कृतियां जुड़ती है। संास्कृतिक आदान-प्रदान से समुदायों में भाई-चारा, परस्पर प्रेम और सद्भावना का विकास होता है। इसी उद्देश्य को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनजातीय संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए हर वर्ष आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन का निर्णय लिया गया है। जनजाति समुदाय की अपनी विशिष्ट कला और संस्कृति होती है। प्रकृति से स्नेह रखने वाले और प्रकृति में ही रम जाने वाले इस समुदाय के नृत्य में कोई सानी नहीं है, उनका कदमताल और लयबद्धता और दुर्लभ वाद्य यंत्र बरबस ही सबको आकर्षित करती है।इस अनूठे महोत्सव में मुख्यमंत्री ने डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के गीत अरपा पैरी की धार गीत को राज्य गीत का दर्जा देकर इस आयोजन को यादगार बना दिया। इस आयोजन की महत्ता पर विचार प्रकट करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि युवा आपसी प्यार, भाईचारा, और अपनी कला के माध्यम से पूरी दुनिया को जोड़ने की ताकत रखते हैं। युवा अपनी रचनात्मक शक्ति के प्रस्फुटन से ऐसा काम करें कि दुनिया से नफरत मिट जाए और हम अपने पारंपरिक मूल्यों को संजोते हुए आदर्श और विश्व नागरिक की दिशा में बढ़े’ जैसे उद्गार से युवाओं में एक नया जोश और ऊर्जा का संचार हुआ।छत्तीसगढ़ के वनांचल में रहने वाले अनेक जनजातीय समुदायों को उस वक्त पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मंच मिला जब राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन हुआ। जनजातीय समुदायों की संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए आयोजित किए गए इस आयोजन में न केवल देश बल्कि विदेशों के भी जनजातीय कलाकारों ने नृत्य, गीत, संगीत की अनुपम छटा बिखेरी। इससे देश-विदेश के जनजातीय कलाकारों को एक दूसरे की संस्कृति, परम्पराओं को जानने, समझने का सुनहरा अवसर भी मिला। इससे छत्तीसगढ़ के जनजातीय कला संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति को संजोने और संवर्धन के इस भागीरथ प्रयास को मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल और संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत की पहल पर नया आयाम मिला। जनजातीय नृत्य महोत्सव में सांसद श्री राहुल गांधी सहित अनेक राष्ट्रीय स्तर के जनप्रतिनिधि तथा अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के शामिल होने से इसकी चर्चा देश-विदेश में हुई। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की भव्यता को देखने और समझने भारत में यूनाइटेड नेशन मिशन की चीफ यूएन रेजिडेंट कोआर्डिनेटर रेनाट लोक डेसालियन भी शामिल हुई।राजधानी के साईंस कॉलेज मैदान में 27 से 29 दिसम्बर 2019 तक आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में देश के 25 राज्यों के 1800 से अधिक कलाकारों सहित 6 अन्य देशों के कलाकारों ने भाग लिया। युगांडा, बेलारूस, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश सहित भारत के विभिन्न राज्यों से आए जनजाति एवं अन्य कलाकारों ने इस आयोजन में भाग लेकर जनजाति नृत्यशैली के कार्यक्रम प्रस्तुत किए।छत्तीसगढ़ के इस अनूठे आयोजन में शामिल हुए थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई ने छत्तीसगढ़ सरकार की सराहना करते हुए कहा कि जनजाति समुदाय की अपनी कला, संस्कृति होती है, इसका संवर्धन और संरक्षण आवश्यक है। जनजाति समुदाय एक कस्बे या इलाकों में निवास करते हैं, ऐसे में उनकी कला, संस्कृति की पहचान एक सीमित क्षेत्र में सिमट कर रह जाती है। ऐसे आयोजनों से सीमित क्षेत्र में सिमटे हुए कलाकारों की प्रतिभाओं को सामने लाने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान बनती है। जनजाति समाज की कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए यह एक बड़ा कदम है।छत्तीसगढ़ के आदिवासी कलाकारों ने मंच मिलने पर खुशी जताते हुए कहा कि जनजाति समुदाय की संस्कृति को जन-जन तक पहुचाने का इससे बेहतर माध्यम हो नहीं सकता है। जीवन के उत्साह और उल्लास को नृत्य के माध्यम से पिरोकर कलाकारों ने नवा छत्तीसगढ़ की पहचान को देश-विदेश में स्थापित किया है।इस महोत्सव में पारंपरिक कलाकारों द्वारा स्व-रचित गीत, अनूठे वाद्ययंत्र से तैयार धुन, आकर्षक वेशभूषा, आभूषण में सज धजकर इस तरह नृत्य कला का प्रदर्शन किया गया कि देखने वाले दर्शक भी पल भर के लिए प्रकृति के करीब पहुँच गए, उनके रहन-सहन, बोली-भाषा, रंगबिरंगी पोशाकों ने मंत्र मुग्ध कर दिया। नृत्य के साथ बाँसुरी, मादर, ढोल, झांझ, मंजीरे की कर्णप्रिय धुन और गायकों के उत्साह से भरे बोल ने सबकों अपने रंग में रंग लिया। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के शिल्पियों को भी न केवल बाजार मिला, बल्कि उनके द्वारा तैयार कलाकृतियों, हाथकरघा वस्त्रों, यहाँ के किसानों द्वारा उपजाने वाले उत्पादों, प्रदर्शनी के माध्यम से रहन-सहन, व्यंजनों के स्टाल के माध्यम से खान-पान को भी लोकप्रियता मिली।