Home छत्तीसगढ़ बस्तर के झिटकू-मिटकी की प्रेम कहानी, राष्ट्रपति भवन में सजेगी प्रेमी...

बस्तर के झिटकू-मिटकी की प्रेम कहानी, राष्ट्रपति भवन में सजेगी प्रेमी युगल की प्रतिमा

1724
55

रायपुर।अभी तक आपने लैला-मजनू, शीरी-फराहद और रोमियो-जूलियट की प्रेम कहानियां पढ़ी और देखी होंगी। अब जल्द ही पूरा देश बस्तर के प्रेमी युगल झिटकू-मिटकी और उनकी अमर प्रेम कहानी से भी परिचित हो सकेंगे। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल की इस प्रेम कहानी को अभी बहुत कम ही लोग जानते हैं।बस्तर के इन प्रेमी युगल झिटकू-मिटकी की प्रतिमा अब राष्ट्रपति भवन में सजेगी। इन दोनों की प्रतिमा को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंहने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेंट की है। बस्तर की घड़वा शिल्पकला पर निर्मित यह प्रतिमाएं 40-40 किलो वजन की बेलमेटल हैं। इसे छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने स्थानीय कलाकारों से तैयार करवाया है।झिटकू-मिटकी को बस्तर में देवी देवताओं की तरह पूजा जाता है। इन्हें आदिवासी समुदाय प्रेम के देवी-देवता की तरह मानते हैं। यहां के युवा इनकी कसमें खाते हैं। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से प्यार अधूरा नहीं रहता। लिहाजा हर बस्तरिया युवा-युवती इनकी पूजा करते हैं।झिटकू और मिटकी की यह प्रेम कहानी बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गांव की है। स्थानीय लोगों के अनुसार, गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था। उसके 7 लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी। अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी। मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएंगे। इस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके। वर के रूप में उन्हें झिटकू मिला, जो भाइयों के साथ काम में हाथ बंटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया।गांव के समीप एक नाला बहता था, जहां सातों भाई और झिटकू पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बांध बनाने के प्रयास में लगे थे। दिन में वे लोग बांध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थे, लेकिन हर रात पानी बांध की मिट्टी को तोड़ देता।एक रात एक भाई ने सपना देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि मांग रही है। इस आधार पर उन्होंने हामी भर ली और बलि के लिए झिटकू का चयन कर लिया। एक रात उन्होंने उसी बांध के पास झिटकू की हत्या कर दी।बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बांध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। इस बलिदान की कहानी फैली तो इससे प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी की पूजा करने लगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here