वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सरकार ने जीडीपी का 6.4 फीसदी वित्तीय घाटे के रूप में लक्षित किया है. हालांकि, ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती व अन्य सरकारी योजनाओं के लिए दी जा रही सब्सिडी के कारण ये इस सीमा को पार करता दिख रहा है.
मनीकंट्रोलके एक लेख के अनुसार, विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने इसके 6.7 से 6.9 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया है. आईडीएफसी फर्स्ट बैंक ने 6.7 फीसदी, कोटक इकोनॉमिक रिसर्च ने 6.8 फीसदी, बीओएफए सिक्योरिटीज ने 6.8-6.9 फीसदी और बार्कलेस, एमके ग्लोबल व मोतीलाल ओसवाल ने इसके 6.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है.
इसके कारणों पर एक नजर
जैसा कि ऊपर हमने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण सरकार की सब्सिडी और शुल्क कटौती है. वहीं, दूसरी वजह सरकार की आय का घटना है. केंद्र को उम्मीद थी कि उसे आरबीआई से 73,948 करोड़ रुपये का लाभांश मिलेगा. लेकिन केंद्रीय बैंक सरकार को केवल 30,307 करोड़ रुपये का लाभांश दे रहा है. यहां सरकार को 43,641 करोड़ का नुकसान हो रहा है. सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों से सरकार को कोई लाभांश मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही. केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 83,000 करोड़ का घाटा दिख रहा है. साथ ही सरकार विनिवेश के लक्ष्य से भी 41,000 करोड़ रुपये पीछे चलती दिख रही है.
सरकार का व्यय
बात करें सरकार के अतिरिक्त खर्च की तो केंद्र उर्वरक सब्सिडी पर 1,10,00 करोड़ रुपये, गरीब कल्याण अन्न योजना पर 80,000 करोड़ रुपये और गैस सिलिंडर सब्सिडी पर 6,100 करोड़ रुपये खर्च करेगा. वित्तीय घाटे की सीमा को लांघने को लेकर आरबीई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि सरकार वित्तीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करेगी. उन्होंने कहा कि सरकार ये कैसी करेगी इसका जवाब उनके पास नहीं है.
रेपो रेट में वृद्धि संभव
कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सरकार के कदमों से भले मुद्रास्फीति कुछ हद तक काबू में आए लेकिन इससे एक समय के बाद इसका सीपीआई मुद्रास्फीति पर 50 बेसिस पॉइंट का डाउनग्रेड इंपेक्ट होगा. बार्कलेस के अनुसार, 8 जून को आरबीआई रेपो रेट में 50 फीसदी की बढ़ोतरी करेगा और फिर अगस्त में भी 25 बेसिस पॉइंट की वृद्धि देखने को मिलेगी.