मुंबई .देव आनंद अपने समकालीनों से कहीं आगे दिखाई देते हैं और इनमें से एक क्षेत्र राजनीति भी है. वे हिंदी फिल्म उद्योग के अकेले अभिनेता थे जिसने राजनीतिक पार्टी का गठन किया था और बाकायदा इससे कई फिल्मी हस्तियों को जोड़ा था.1977 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो ये कलाकार उसके साथ थे. हालांकि इस गठबंधन में जल्द ही मतभेद पैदा हो गए. दो साल बाद ही यह सरकार गिर गई. कहा जाता है कि इस घटनाक्रम से देव आनंद और उनके साथियों का तत्कालीन राजनीतिक दलों से मोहभंग हो गया. तब इन लोगों ने तय किया कि वे अब किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे और खुद अपनी एक पार्टी बनाएंगे.यह 1979 की बात है जब देव आनंद ने संजीव कुमार, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा और हेमा मालिनी सहित फिल्म उद्योग के कुछ और दिग्गज लोगों को साथ लेकर एक राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी. नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया (एनपीआई) नाम से बनी इस पार्टी के पहले अध्यक्ष खुद देव आनंद चुने गए. अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं, ‘मैं पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था और मैंने वह चुनौती स्वीकार कर ली थी. इस पार्टी का मकसद था लोकसभा चुनाव में उन उम्मीदवारों का समर्थन करना जो अपने-अपने क्षेत्र में सबसे काबिल हैं.’उसी साल जब इस राजनीतिक पार्टी की पहली रैली मुंबई के शिवाजी पार्क में हुई तो आम लोगों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां भी यहां जुटी भीड़ को देखकर हैरान थीं. इस रैली में देव आनंद के साथ संजीव कुमार सहित प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एफसी मेहरा और जीपी सिप्पी (शोले के निर्माता) शामिल थे. यहां इन लोगों के भाषण भी हुए. यह पहला मौका था जब हिंदी फिल्म उद्योग से जुड़ी हस्तियां राजनीति की बात कर रही थीं और उनको सुनने के लिए भारी भीड़ जमा थी.इस रैली ने कांग्रेस और जनता दल को आशंकित कर दिया . इन पार्टियों ने तमाम फिल्मी कलाकारों को चुनावों से दूर रहने के लिए चेतावनी देनी शुरू कर दी थी. दूसरी तरफ एनपीआई में किसी को भी राजनीति का पूर्व अनुभव नहीं था. शायद यही सब वजह रहीं कि जब 1980 में लोकसभा चुनाव घोषित हुए तो पार्टी का कोई जानामाना चेहरा चुनाव मैदान में नहीं उतरा.आखिरकार कुछ ही महीनों बाद खुद देव आनंद ने एनपीआई को भंग कर दिया था.