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नए चेहरों से नई पीढ़ी विकसित करने की तैयारी में भाजपा

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नई दिल्ली। मोदी सरकार के ऐसे मंत्री जो राज्यसभा के सदस्य हैं, उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव लड़ना होगा। पार्टी ने उच्च सदन में दो या उससे अधिक कार्यकाल वाले सात मंत्रियों के अलावा उन पांच मंत्रियों को भी चुनाव लड़ाने का फैसला किया है, जिन्होंने या तो अपने कामकाज से छाप छोड़ी है या जिनकी अपने राज्य की राजनीति में अच्छी पैठ है।

पार्टी ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा ही फैसला किया था, हालांकि बाद में इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया। पार्टी की रणनीति आगामी लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन करने वाले राज्यों के साथ बेहतर स्थिति वाले राज्यों में बड़ी संख्या में नए चेहरे को मौका देने की भी है। इसके जरिये पार्टी में नई पीढ़ी विकसित करने की भी तैयारी है। इसी योजना के तहत जल्द होने वाले केंद्रीय संगठन विस्तार में भी बड़ी संख्या में नए चेहरों को मौका दिया जाएगा।

गोयल, सीतारमण, पुरी, भूपेंद्र, मांडविया को दिखाना होगा दम
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, नई पीढ़ी विकसित करने के लिए पहले ही राज्यसभा में दो से अधिक कार्यकाल नहीं देने और 75 वर्ष की उम्रसीमा पार कर चुके नेताओं को टिकट न देने का अघोषित नियम है।

इसी नियम के तहत दो या उससे अधिक कार्यकाल वाले मंत्रियों पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण, हरदीप पुरी, भूपेंद्र यादव, मनसुख मांडविया, धर्मेंद्र प्रधान और पुरुषोत्तम रुपाला को लोकसभा चुनाव लड़ना होगा।
इस आशय के फैसले की जानकारी इन मंत्रियों को दी जा चुकी है। ये मंत्री निर्देशों के अनुरूप चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं।

जयशंकर, वैष्णव, सिंधिया, राणे भी लड़ सकते हैं चुनाव
इन मंत्रियों के अलावा पांच मंत्री ऐसे हैं, जिनका राज्यसभा में पहला कार्यकाल है। इनमें से कुछ पहले ही लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, जबकि कुछ अपने कामकाज के कारण देश में लोकप्रिय हैं। इनमें रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और विदेश मंत्री एस जयशंकर को लोकप्रियता के कारण और ज्योतिरादित्य सिंधिया, नारायण राणे और सर्वानंद सोनोवाल को लोकसभा चुनाव का अनुभव होने के कारण मैदान में उतारा जाएगा। सूत्रों का कहना है कि जयशंकर को दिल्ली और हरदीप पुरी को पंजाब के किसी संसदीय सीट से टिकट दिया जा सकता है।

एक तिहाई सांसदों के कटेंगे टिकट
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की योजना एक तिहाई सांसदों को टिकट से वंचित कर नए चेहरे को मौका देने की है। इनमें दो दर्जन सांसद उम्रसीमा के नियम के दायरे में आ रहे हैं, जबकि आंतरिक सर्वे में कई सांसदों की अपने क्षेत्रों में लोकप्रियता नकारात्मक श्रेणी में है। टिकट काटने का कारण सत्ता विरोधी लहर को कम करना है। इस कड़ी में सबसे अधिक टिकट मध्य प्रदेश, कर्नाटक गुजरात के सांसदों के कटेंगे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी कई सांसद बेटिकट किए जाएंगे।