जब देश में कोरोना अपने चरम पर था, तो कुछ लोग इसे आपदा में अवसर बनाने में लगे रहे। कोरोना महामारी के दौरान अचानक रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड बढ़ गई। जब किसी चीज की डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है और सप्लाई कम होने लगती है तो इसकी कालाबाजारी बढ़ जाती है। कोरोना महामारी के दौरान जब रेमडेसिविर इंजेक्शन डिमांड बढ़ी और इसकी सप्लाई कम हुई तो इसकी कालाबाजारी भी बढ़ गई। आलम यह था कि उन दिनों नागपुर जैसे शहर में रेमडेसिविर इंजेक्शन 40 हजार रुपए में बिकने लगे।
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी से एक मर्डर मिस्ट्री जोड़कर निर्देशक प्रतीक मोइत्रो ने एक कहानी गढ़ दी, ‘माइनस 31-द नागपुर फाइल्स’ की।फिल्म ‘माइनस 31-द नागपुर फाइल्स’ की शुरुआत एक मर्डर मिस्ट्री से होती है। शहर के एक नामी बिजनेसमैन की हत्या करके जहां पर कोरोना से मर रहे लोगों को जल प्रवाह किया जाता है, वहीं पर उसकी लाश को फेंक कर एक शख्स चला जाता है। उस शख्स की पहचान इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि वह मास्क पहने हुए था। पुलिस की तहकीकात शुरू होती है और पुलिस हत्या के कारणों के तह में जाने की कोशिश करती है।
कहानी की शुरुआत ठीक क्राइम पेट्रोल के किसी एपिसोड की तरह होती है। लेकिन क्राइम पेट्रोल शो की तरह रोमांच पैदा नहीं कर पाती है।क्राइम शो ‘क्राइम पेट्रोल’ की यह खासियत होती हैं कि अगर आपने पांच मिनट शो देख लिए तो जबतक कातिल पकड़ा नहीं जाता तब तक टीवी से नजर हटती नहीं है। लेकिन यहां मामला उसके एकदम उल्टा है। फिल्म ‘माइनस 31-द नागपुर फाइल्स’ में ऐसा कोई टर्न और ट्विस्ट नहीं, जो दर्शकों को सीट से बांधे रखे।