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कोरबा के वन क्षेत्र लेमरु में एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्रस्ताव

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रायपुर। कोरबा के वन क्षेत्र लेमरु में एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्रस्ताव फिर से तैयार हो रहा है। अब हाथी की चाल पर प्रस्तावित रिजर्व के बफर जोन का दायरा बढ़ाया जाएगा। अभी तक सरकार ने बफर जोन को 10 किमी रखने का विचार किया था, लेकिन अब 15 किमी या उससे भी अधिक क्षेत्र में बफर जोन बनाया जाएगा।पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में बादलखोर, तमोरपिंगला, सेमरसोद और लेमरु को मिलाकर एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्रस्ताव तैयार हुआ था, लेकिन लेमरु में बड़ा कोल एरिया होने के कारण इसे प्रस्ताव से बाहर कर दिया था। हालांकि, उसके बाद एलीफैंट रिजर्व बनाने का पूरा प्रस्ताव ही ठंडा पड़ गया था।अब प्रदेश में जिस तरह से मानव-हाथी के बीच द्वंद्व चल रहा है, उसे देखकर कांग्रेस सरकार ने एलीफैंट रिजर्व के प्रस्ताव पर फिर से काम शुरू करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर को निर्देश दिया है कि लेमरु एलीफैंट रिजर्व का प्रस्ताव तैयार कराएं, ताकि उसे मंत्रिमंडल में लाया जा सके। इसके लिए झारखंड, मध्यप्रदेश और ओडिशा के हाथी विशेषज्ञों को यहां बुलाकर उनसे एलीफैंट रिजर्व को लेकर सुझाव लिया गया है।स्थानीय विशेषज्ञों से भी राय ली गई है। विशेषज्ञों ने बताया है कि हाथी प्रतिदिन 15 किमी या उससे थोड़ा ज्यादा चलता है। इस कारण बफर जोन उसकी प्रतिदिन की औसत चाल के हिसाब से बनाना होगा, तब हाथियों के कॉरिडोर से बाहर जाने की संभावना बहुत कम होगी। प्रदेश में पिछले तीन वर्ष में हाथियों ने 210 ग्रामीणों को मारा है। वन मंत्री के अनुसार प्रदेश में 250 हाथी हैं।  केंद्र सरकार ने 10 वर्ष वहले लेमरु वन क्षेत्र में एलीफैंट कॉरिडोर बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, लेकिन बीच में नकिया कोल ब्लॉक आ गया था। इस कारण कोल ब्लॉक को अलग करते हुए दूसरा प्रस्ताव भी बना था। 2009 में राज्य सरकार ने एलीफैंट रिजर्व या कॉरिडोर बनाने की फाइल ही बंद कर दी। अब नई सरकार के निर्देश पर कोरबा वनमंडल से लेमरु की भौगोलिक रिपोर्ट वन मुख्यालय में आ चुका है।  लेमरु का वन क्षेत्र 870 वर्ग किमी में फैला हुआ है, जिसमें से 450 वर्ग किमी क्षेत्र में एलीफैंट रिजर्व बनाने का प्रस्ताव बन रहा है। हाथियों के लिए जिस हिस्से में पानी उपलब्ध है और जो उनके लिए अनुकूल क्षेत्र होगा, वहां कोर एरिया बनाया जाएगा। कोर एरिया के चारों तरफ बफर जोन होगा, मतलब जिस क्षेत्र में कम पेड़-पौधे होंगे। जहां पर हाथियों पर नजर रखी जा सकेगी। कोर एरिया से भटककर बाहर आते ही हाथी को वापस भेजने की व्यवस्था होगी।