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सात समंदर पार की सड़कों पर फर्राटे भरती है ‘भिलाई

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भिलाई में पले-बढ़े रामानंद ने सुदूर अमेरिका में ऐसे संजोया है अपने भिलाई को
भिलाई। इस्पात नगरी भिलाई में पले-बढ़े वरिष्ठ इंजीनियर एमवी रामानंद बीते 4 दशक से अमेरिका में रहने के बावजूद अपने बचपन के शहर को नहीं भूले हैं। बीते बरसों में उन्होंने अपने भिलाई को आदरांजलि देने एक अनूठी पहल की है। उनकी इस पहल की वजह से अमेरिकावासियों को भिलाई के नाम से रूबरू होने का मौका मिल रहा है।
दरअसल, उनकी स्पोट्र्स कार में बाकायदा ‘भिलाई-1Ó दर्ज है और इसी नंबर प्लेट के साथ रामानंद अमेरिका की सड़कों पर फर्राटे भरते हैं। पेशे से इंजीनियर रामानंद का कहना है कि जहां मेरा बचपन बीता और भविष्य की नींव तैयार हुई, उस भिलाई को आजीवन कभी नहीं भूल पाउंगा। भिलाई हमेशा मेरी यादों में रहता है, इसलिए मैंनें अपनी कार में भी अमेरिका के नियमानुसार अपनी पसंद से ‘भिलाईÓ दर्ज करवाया है।
रामानंद पिछले दिनों अल्प प्रवास पर भिलाई आए थे। तब उन्होंने इस पर विस्तार से बात की। अपने परिवार और भिलाई में बीते दिनों की जानकारी देते हुए रामानंद ने बताया कि मेरे पिता एमबी वरदराजन 1957 में भिलाई ज्वाइन किए थे।यहां से फिर उच्च तकनीकी प्रशिक्षण के लिए तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) भी गये। यहां भिलाई स्टील प्लांट में उन्होंने मटेरियल प्लानिंग विभाग (एमपीडी) में सेवा दी। पिता को 1957 में सेक्टर-10 और फिर बाद में सेक्टर-5 में के स्ट्रीट-40 में मकान 5 ए अलॉट हुआ। मेरी माता श्रीमती सरोजा एक गृहिणी थीं।
अपने स्कूली दिन याद करते हुए रामानंद ने बताया कि बाल मंदिर के बाद क्लास-1 तक हम सेक्टर-3 बीएसपी स्कूल में रिक्शे में जाते-आते थे। तब दिसंबर से दिसंबर तक का शैक्षणिक सत्र था। इसी दौरान सेक्टर-5 में बीएसपी का इंग्लिश मीडियम प्राइमरी स्कूल खुला और क्लास-2 में उनका एडमिशन करवा दिया गया।
सेक्टर-5 से हमारा शैक्षणिक सत्र जून से जून तक का कर दिया गया। 1973 में सीनियर सेकेंडरी स्कूल सेक्टर-10 में छठवीं से प्रवेश लेने वाला हमारा दूसरा बैच था। आईआईटी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद 1979 में मेरा प्रवेश आईआईटी बनारस हिंदु विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हो गया। बाद में मैनें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के डिफेंस प्रोजेक्ट में चार साल तक सेवा दी। फिर 1988 में अमेरिका चला गया। वहां मैं प्रोडक्ट डेवलपमेंट में ज्यादा काम करता हूं। अभी मैं अमेरिका में कैलिफोर्निया के अरवैन में रहता हूं। अपने बचपन के शहर भिलाई की याद तो हमेशा सताती है लेकिन यहां आने का मौका कम मिलता है।1990, 2009 और 2023 में भिलाई आने का मौका मिला।

अमेरिकी कानून की वजह से मौका मिला ‘भिलाईÓ दिखाने का

अपनी कार में ‘भिलाईÓ दर्ज करवाने के संबंध में रामानंद ने बताया कि मैनें अक्टूबर 2019 में स्पोट्र्स कार माज्दा मियाटा एमएक्स-5 खरीदी थी। तब अमेरिकी कानून के हिसाब से मुझे अपने भिलाई को अनूठे तरीके से याद करने का मौका मिला। अमेरिका में आप अपने वाहन की नंबर प्लेट को अपनी पसंद से कस्टमाइज करवा सकते हैं।
इसमें वहां के स्थानीय आवंटित नंबर के साथ आप कोई नाम देना चाहें तो दे सकते हैं। मुझे लगा यह एक बेहतर मौका है। इसके लिए मैनें कैलिफोर्निया प्रशासन को अपने वाहन की नंबर प्लेट पर ‘भिलाईÓ दर्ज करवाने आवेदन दिया। हालांकि मैं उस वक्त हैरान रह गया, जब मेरा आवेदन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि ‘भिलाईÓ किसी और ने रजिस्टर करवा रखा है। यह अलग बात है कि ‘भिलाईÓ लिखवाने वाले इन सज्जन का मुझे अभी तक पता नहीं चल पाया है। इसके बाद मैनें अपने आवेदन में सुधार करते हुए इसे ‘भिलाई-1Ó कर दिया और मुझे इसकी अनुमति मिल गई।

हर कोई चौंक जाता है मेरी कार की नंबर प्लेट देख कर

रामानंद बताते हैं कि अपने इस कार से वह अक्सर घंटों और मीलों सफर तय करते हैं। कहीं न कहीं कोई न कोई भारतीय और भिलाईयन मिल जाता है। ऐसे लोग मेरी कार की नंबर प्लेट देखकर रुकते हैं और बात करते हैं। अपने भिलाई को अमेरिका में रह कर इस अंदाज में याद कर मैं हमेशा अपने बचपन की यादों में खो जाता हूं। रामानंद कहते हैं-पिछले दिनों लॉस एंजेलिस में क्रेस्टो माउंटेन रोड पर अपनी इस कार से लंबा सफर तय किया। इसी तरह अमेरिका के अलग-अलग हिस्सों में वह अपनी इसी कार से लंबा सफर तय करते हैं। इसमें कई बार लोग नंबर प्लेट देखकर चौंक जाते हैं और भिलाई के बारे में पूछते हैं। इससे मुझे दिली खुशी मिलती है।

तब हमारे लिए किताबे ही सब कुछ थी, साइकिल से जाते थे नेहरू हाउस

रामानंद को आज भी किताबें पढऩा ज्यादा पसंद है। आज भी उनको बचपन की नेहरू हाउस सेक्टर-1 की लाइब्रेरी नहीं भूलती, जहां वह किताबें इश्यू करवाने सेक्टर-5 से साइकिल से आते-जाते थे। रामानंद बताते है- हम लोगों को पढऩे का इतना शौक था कि सिविक सेंटर चौहान बुक स्टोर से मम्मी किताबें खरीद कर लाकर पढऩे देती थी। हम लोग 1-2 दिन में किताब पढ़ कर खत्म कर देते थे। इसमें पैसे बहुत लगते थे। ऐसे में मम्मी को किसी ने बताया कि सेक्टर-1 नेहरू हाउस में लाइब्रेरी है बीएसपी की। बस, फिर क्या था तुरंत हमारा कार्ड बन गया और उसके बाद हम लोग अक्सर साइकिल से नेहरू हाउस लाइब्रेरी किताबें इश्यू कराने जाते थे। तब हम लोग शरलॉक होम्स की डिटेक्टिव मिस्ट्री बहुत पढ़े हैं। फिर स्कॉटिश लेखक एलिस्टर मैकलिन की किताबें भी खूब पढ़ी, जिसमें एक शहर दुब्राओनिक का जिक्र अक्सर आता है। बचपन की मेरी यह याद अब तक नहीं भूली इसलिए अभी कुछ साल पहले 2018 में जैसे ही मौका मिला, मैं अपने बेटे को लेकर इस शहर को देखने पहुंच गया।

अमेरिका में मिस करता हूं भिलाई जैसा अपनापन

भिलाई में बिताए अपने बचपन को याद करते हुए रामानंद कहते हैं-तब हम सबकी अपने घर के आसपास हर स्ट्रीट में रहने वालों से पूरी जान-पहचान थी। अंकल-आंटी से लेकर बच्चे तक सब एक दूसरे को जानते-पहचानते थे। मेरी मातृभाषा कन्नड़ है, मेरी स्ट्रीट में तमाम भाषाई लोग रहते थे लेकिन लेकिन हम सब मिलते थे तो हिंदी में खूब बातें करते थे। अब यह सब अमेरिका में मिस करता हूं। अमेरिका में आज भी कोई हिंदी बोलने वाला मिल जाए तो मैं लंबी बातचीत करने लग जाता हूं। बचपन में नजमुर्रहमान, संदीप सेन और मनोज मेहता घर के पास ही रहते थे और आज भी इन सबसे वैसी ही दोस्ती है। भिलाई जैसा माहौल मुझे दुनिया में और कहीं नहीं मिला।