दुर्ग। गौरव पथ पर सुराना कॉलेज के पास की असहनीय बदबू आपने जरूर झेली होगी। दुर्ग शहर के जिस साई द्वार से खुशबू उठनी चाहिए, वहां से दिन–रात दुर्गंध उठता है। उसकी वजह सिर्फ वहां का कचरा निष्पादन केंद्र बस नही, बल्कि यह शहरी व्यवस्था से उठती सड़ान्ध भी है।
इस मार्ग से महापौर, विधायक, कलेक्टर, एसपी, निगम कमिश्नर यहां तक संभागायुक्त भी गुजरते हैं। मगर जनसरोकारो के प्रति हमारी व्यवस्था के ये ऊंचे लोग कितने संवेदनशील है, कचरों से उठते बदबू से समझ सकते है। यह स्थिति सिर्फ दुर्ग शहर की नही, बल्कि हमारे राज्य और देश की भी है। यहां व्यवस्था चलाने वाले इन बड़े लोगो से सवाल पूछने की जहमत कोई नही उठता। सड़क सें गुजरने वाला आम शहरी आखिर किससे गुहार लगाएं?
इस देश में आज भी आम लोगो के सवालो का वजन नही। जबकि, बड़े लोग अपने एयर कंडीशनर गाड़ियों में इस इलाके से पल भर मे गुजर जाते हैं।
उन्हें सड़ती–गलती बदबू का पता है, या वे इसे नजरंदाज कर जाते हैं, भगवान जाने।
सवाल उठना लाजिमी है, वे कौन हैं जो शहर को गंदा करते हैं, दुर्गंध फैलाते हैं? बहुत सारे लोग समीप के समृद्धि बाजार में रहने वाले देवार परिवारों को गंदगी फैलाने के लिए दोषी ठहराते रहे हैं। देवार समुदाय के कुछ परिवार गौरव पथ पर शीतला मंदिर के सामने फुटपाथ पर जिंदगी बसर करते थे, वहां अजीब सी दुर्गंध फैले रहती थी। आने जाने वाले लोग मुंह पर रूमाल लगाकर वहां से गुजरते थे। अनेक शिकायतों के बाद देवारो को वहां से हटा दिया गया। पर अभी यकीन मानिए, नगर निगम के कचरा संग्रहण केन्द्र से उठती दुर्गंध पहले से कई गुणा अधिक है। देवारों को तो हटा दिया गया, मगर कचरा निष्पादन केंद्र को इस सड़क से कब हटाया जायेगा, पता नही। पांच से ज्यादा साल तो ऐसे ही गुजर गए।
शहर के बीचोबीच वह भी गौरवपथ के किनारे कचरा निष्पादन केंद्र बनाने का विचार पता नही किसके मन की उपज है। कई सालो से उठ रहे दुर्गंध के बावजूद इसे यहां से हटाने का ख्याल कैसे किसी जनप्रतिनिधि के जेहन में नही आया, यह उससे भी बड़ा प्रश्न है।
इन हालातो के बीच नगर निगम द्वारा स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग में स्थान बनाने का उपक्रम भी हास्यप्रद है।
दुर्ग। गौरव पथ पर सुराना कॉलेज के पास की असहनीय बदबू आपने जरूर झेली होगी। दुर्ग शहर के जिस साई द्वार से खुशबू उठनी चाहिए, वहां से दिन–रात दुर्गंध उठता है। उसकी वजह सिर्फ वहां का कचरा निष्पादन केंद्र बस नही, बल्कि यह शहरी व्यवस्था से उठती सड़ान्ध भी है।
इस मार्ग से महापौर, विधायक, कलेक्टर, एसपी, निगम कमिश्नर यहां तक संभागायुक्त भी गुजरते हैं। मगर जनसरोकारो के प्रति हमारी व्यवस्था के ये ऊंचे लोग कितने संवेदनशील है, कचरों से उठते बदबू से समझ सकते है। यह स्थिति सिर्फ दुर्ग शहर की नही, बल्कि हमारे राज्य और देश की भी है। यहां व्यवस्था चलाने वाले इन बड़े लोगो से सवाल पूछने की जहमत कोई नही उठता। सड़क सें गुजरने वाला आम शहरी आखिर किससे गुहार लगाएं?
इस देश में आज भी आम लोगो के सवालो का वजन नही। जबकि, बड़े लोग अपने एयर कंडीशनर गाड़ियों में इस इलाके से पल भर मे गुजर जाते हैं।
उन्हें सड़ती–गलती बदबू का पता है, या वे इसे नजरंदाज कर जाते हैं, भगवान जाने।
सवाल उठना लाजिमी है, वे कौन हैं जो शहर को गंदा करते हैं, दुर्गंध फैलाते हैं? बहुत सारे लोग समीप के समृद्धि बाजार में रहने वाले देवार परिवारों को गंदगी फैलाने के लिए दोषी ठहराते रहे हैं। देवार समुदाय के कुछ परिवार गौरव पथ पर शीतला मंदिर के सामने फुटपाथ पर जिंदगी बसर करते थे, वहां अजीब सी दुर्गंध फैले रहती थी। आने जाने वाले लोग मुंह पर रूमाल लगाकर वहां से गुजरते थे। अनेक शिकायतों के बाद देवारो को वहां से हटा दिया गया। पर अभी यकीन मानिए, नगर निगम के कचरा संग्रहण केन्द्र से उठती दुर्गंध पहले से कई गुणा अधिक है। देवारों को तो हटा दिया गया, मगर कचरा निष्पादन केंद्र को इस सड़क से कब हटाया जायेगा, पता नही। पांच से ज्यादा साल तो ऐसे ही गुजर गए।
शहर के बीचोबीच वह भी गौरवपथ के किनारे कचरा निष्पादन केंद्र बनाने का विचार पता नही किसके मन की उपज है। कई सालो से उठ रहे दुर्गंध के बावजूद इसे यहां से हटाने का ख्याल कैसे किसी जनप्रतिनिधि के जेहन में नही आया, यह उससे भी बड़ा प्रश्न है।
इन हालातो के बीच नगर निगम द्वारा स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग में स्थान बनाने का उपक्रम भी हास्यप्रद है।