भोपाल । हम मध्यप्रदेश का 69 वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। भारत का हृदय कहा जाने वाला मध्यप्रदेश 1 नवम्बर 1956 को अस्तित्व में आया, जिसका गठन तत्कालीन मध्यभारत, विंध्य प्रदेश, भोपाल रियासत तथा महाकौशल के कुछ हिस्से को एकीकृत कर किया गया था। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर तथा झीलों की नगरी कहे जाने वाले भोपाल को प्रदेश की राजधानी बनाया गया। 44 वर्षों के बाद प्रदेश का विभाजन हुआ और जनता की मांग पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा नए राज्य छत्तीसगढ़ का गठन किया गया। अतीत पर नजर डाली जाए तो मध्यप्रदेश ने अपने गठन और विभाजन के दौर में अनेक उतार- चढ़ाव देखे हैं लेकिन अब यह राज्य प्रगति के नये सोपान नाप रहा है। डबल इंजन की सरकार इस राज्य की तस्वीर और तकदीर बदलने की दिशा में शिद्दत से लगी हुई है। प्रदेश की जनता की खुशहाली और समरस विकास के लिए तमाम जनहितैषी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो इस बात की गवाह हैं कि मध्यप्रदेश आने वाले दिनों में सर्वश्रेष्ठ राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहेगा। इस विकासोन्मुखी अभियान में जहां एक ओर देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सुस्पष्ट व दूरगामी सोच है, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार की प्रदेशवासियों की सेवा करने की प्रतिबद्धता है।
मध्यप्रदेश के इतिहास, भूगोल और संस्कृति पर दृष्टिपात करें तो यह राज्य अनेक विविधताओं को अपने में समेटे हुए है। प्रचुर वन संपदा, अथाह जलराशि वाली नदियां, विपुल खनिज भंडार, खूबसूरत पर्यटन स्थल, पुरातात्विक धरोहर आदि सब कुछ तो उपलब्ध है इस प्रदेश में। नर्मदा घाटी में मिले साक्ष्यों से स्पष्ट है कि इस अंचल में अनेक सभ्यताएं पुष्पित एवं पल्लवित हुई हैं। धार्मिक नगरी उज्जैन में भगवान महाकाल का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है तो ओरछा में राम राजा विराजमान हैं। चित्रकूट की महिमा तो अवर्णनीय हैं। यहीं गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम के दर्शन किए थे। क्षिप्रा के तट पर संदीपनी आश्रम में श्रीकृष्ण और उनके सखा सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी। राजा विक्रमादित्य, महाकवि कालिदास, राजा भोज एवं संत सिंगाजी की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि होने का सौभाग्य मध्यप्रदेश को ही प्राप्त है। सॉंची में विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप हैं तो सोनागिरी में प्रसिद्ध जैन मंदिर। खजुराहो में तो पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं।
दरअसल, मध्यप्रदेश जितना विस्तृत है, उतना ही ऐतिहासिक भी है। चंद्रशेखर आजाद के शौर्य, रानी दुर्गावती के बलिदान, टाट्या मामा की शहादत, छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, देवी अहिल्या के सुशासन को मध्यप्रदेश की विरासत के रूप में रेखांकित किया जाता है। संगीत सम्राट तानसेन तथा उस्ताद अलाउद्दीन खां तो संगीत के क्षेत्र की अनमोल धरोहर हैं। न जानें कितने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुर्बानी प्रदेश के कोने-कोने में आज भी जीवंत है। नर्मदा, सोन, चंबल, बेतवा, केन, ताप्ती, पेंच, पार्वती, बेनगंगा, रेवा तथा माही आदि नदियों के उद्गम स्थल यहीं पर हैं। ये नदियां प्रदेश की चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। नर्मदा को तो मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी माना जाता है। प्रदेश के एक तिहाई भूभाग के निवासियों को नर्मदा आर्थिक रूप से संपन्न बनाती है। नर्मदा नदी पर निर्मित सरदार सरोवर, इंदिरासागर और ओंकारेश्वर परियोजनाओं से प्रदेश की खुशहाली और समृद्धि के द्वार खुल गये हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार के शासन काल में नर्मदा को क्षिप्रा से जोड़ा जा चुका है। केन को बेतवा से जोड़ने की पहल जारी है।