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बुलडोजर पर सुप्रीम फैसले का स्वागत

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अपराध की घटना होते ही गरजने वाला बुलडोजर क्या शांत हो जाएगा? सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को आए बड़े फैसले के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है। यूपी के नेताओं की ओर से भी इसको लेकर प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने तो बुलडोजर का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए करने का आरोप लगाया। इस मामले में सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी से सवाल किया कि क्या वे माफी मांगेंगे? वहीं, योगी सरकार में मंत्री ओपी राजभर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य है। पूरे देश में इसका स्वागत किया जा रहा है। सरकार का लक्ष्य कभी किसी के घर को गिराने का नहीं रहा है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को लेकर खूब चर्चा हो रही है। इसमें बुलडोजर एक्शन पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। ऐसे में बाबा के बुलडोजर पर ब्रेक नहीं लग पाएगा।

बुलडोजर एक्शन का मामला क्या है?
दरअसल, अप्रैल 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में होने वाले ध्वस्तीकरण अभियान चलाया गया था। जहांगीरपुरी की घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिसके बाद इस अभियान पर रोक लगा दी गई। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि वह आदेश दे कि कोई अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर कार्रवाई का सहारा नहीं ले सकते। अगस्त में मध्य प्रदेश और राजस्थान में अधिकारियों द्वारा बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ दो याचिकाएं न्यायालय में दायर की गई थीं। इनमें से एक उदयपुर के एक मामले से संबंधित था, जहां एक व्यक्ति का घर इसलिए गिरा दिया गया क्योंकि उसके किराएदार के बेटे पर अपराध का आरोप था।उत्तर प्रदेश में भी ऐसे मामले को लेकर याचिकाकर्ता कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप है, उसे ध्वस्तीकरण का आधार नहीं बनाया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया है आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर दायर याचिका पर सुनवाई की थी। इस मामले में बुधवार को दिए गए फैसले में कहा गया कि किसी के भी घर को उजारा नहीं जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकारी अधिकारी कानून हाथ में लेकर इस प्रकार का एक्शन लेते हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।कोर्ट ने यह भी कहा कि हमने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है। यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कैसे काम करती हैं? न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है। न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है। यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। किसी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए जाने के बाद कोर्ट के पास सजा देने का अधिकार है।