Home छत्तीसगढ़ जागृति के जुनून की कहानी

जागृति के जुनून की कहानी

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पति और बच्ची को पसंद था मशरूम खाना इसलिए शुरू किया उत्पादन, हर महीने बेच रही हैं 100 किलो से अधिक ओएस्टर मशरूम
इतनी डिमांड है कि लोगों को लगानी पड़ती है कतार
जुलाई 2020 से अधिक प्रोटीन वाले पिंक ओएस्टर मशरूम का भी उत्पादन शुरू
मतवारी की जागृति साहू ने कड़ी मेहनत से तय किया सामान्य गृहिणी से मशरूम लेडी बनने का सफर
कभी शिक्षिका न बन पाने से थी उदास आज बन गईं है मास्टर ट्रेनर, अब तक 850 महिलाओं को दे चुकी हैं प्रशिक्षण
ऑल इंडिया लेवल पर मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देने हुआ चयन

दुर्ग 22 दिसंबर 2020

जिंदगी की यही रीत है ,हार के बाद ही जीत है गीत की ये पंक्तियां मतवारी की जागृति साहू पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। जिन्होंने शिक्षिका बनने की चाहत पूरी न होने के बाद फिर से कोशिश की हारने के बाद फिर उठीं और तय किया नया रास्ता और जीत भी हासिल की। पति का साथ और प्रोत्साहन मिला और 2 साल में जागृति साहू को मिला दुर्ग की ‘‘मशरूम लेडी’’ का खिताब। सफर आसान तो नहीं था मगर खुद को साबित करने के जुनून में जागृति ये मंजिल पाई है। सीईओ जिला पंचायत श्री सच्चिदानंद आलोक ने उनके काम को देखकर यह उपमा उन्हें दी है।
पति और बेटी को पसंद था मशरूम खाना,इसलिए शुरू किया उत्पादन– जागृति साहू बीएससी और एमए पास हैं। इसलिए उनकी इच्छा थी कि नौकरी करें। जागृति बताती है कि शिक्षाकर्मी के लिए चयनित होने के बाद भी कुछ तकनीकी कारणों से जागृति का शिक्षिका बनने का सपना अधूरा रह गया था। वह कुछ उदास  रहने लगी थी । लेकिन कहते हैं ना जिंदगी ठहरने का नाम नहीं है। जागृति बताती है कि उनके पति और बच्ची को मशरूम खाना बहुत पसंद था। सप्ताह में करीब दो से तीन बार उनके घर मशरूम जरूर आता था। वे 200 रुपए प्रति किलो में मशरूम खरीदा करतीं।
एक दिन उनके पति ने कहा कि घर पर यूं ही खाली बैठने से अच्छा क्यों ना वह मशरूम का उत्पादन शुरू करें। जागृति को ये आइडिया जम गया पति की प्रेरणा के बाद उन्होंने मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेने की सोची। जागृति पढ़ी लिखी तो थी हीं और लगन की पक्की भी। जब उनको पता चला कि जिला पंचायत द्वारा बिहान कार्यक्रम के तहत स्व सहायता समूह की महिलाओं को उनकी इच्छा अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वह स्वरोजगार की स्थापना कर सकें। उन्होंने मशरूम उत्पादन का  प्रशिक्षण लेने की इच्छा व्यक्त की 2018 में पहले पीएनबी से 3 दिवसीय और देना बैंक के प्रशिक्षण कार्यक्रम में 10 दिवसीय प्रशिक्षण लिया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा शुरुआत में 5 हजार रुपए से मशरूम उत्पादन शुरू किया। फिर बिहान योजना के तहत बैंक लिंकेज के माध्यम से 99 हजार रुपए का ऋण मिला।
जिसमें से 50 हजार रुपए से उन्होंने अपनी मशरूम उत्पादन की यूनिट को बड़ा रूप दिया। बाकी के रुपए समूह की महिलाओं को कृषि कार्य के रूप में ऋण के रूप में दिया। जागृति न केवल खुद काबिल बनी बल्कि मतवारी गांव की दूसरी महिलाओं को भी उन्होंने अपने काम से जोड़ा। आज घर बैठे महिलाएं अच्छी आमदनी अर्जित कर रही हैं।
अपनी मेहनत से गायत्री स्व सहायता समूह ने मशरूम उत्पादन कर 2 साल में 6 लाख रुपए कमाए – जागृति साहू बताती है  कि उनके समूह में 12 महिलाएं हैं वर्ष 2018 से लेकर अब तक उन्होंने 6 लाख रुपए की आमदनी अर्जित की है। इस साल उनके इस समूह द्वारा 2 लाख 20 हजार रुपए का मशरूम बेचा गया है। जागृति ने बताया कि बताया कि मशरूम में लागत का दोगुना फायदा होता है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से  120 रु. प्रति किलो में मशरूम के बीज खरीदती हैं और 1 किलो बीज से 10 किलो मशरूम का उत्पादन होता है। सभी खर्चे निकाल कर भी अच्छी आमदनी हो जाती है।
बनीं मास्टर ट्रेनर, अब तक प्रदेश की 850 महिलाओं को दिया प्रशिक्षण 750 महिलाएं कर रहीं उत्पादन– जागृति ने मशरूम उत्पादन करना सीखा लेकिन उनकी यात्रा यही समाप्त नहीं हुई उनके कौशल को देखते हुए पीएनबी द्वारा राजधानी रायपुर में संचालित एकमात्र कृषक प्रशिक्षण केंद्र में मास्टर ट्रेनर के रूप में चयनित कर लिया गया। आज वह प्रदेश भर की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। जागृति बताती है कि अब तक उन्होंने 850 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है जिसमें से 750 महिलाएं मशरूम उत्पादन कर आमदनी अर्जित कर रही हैं। जागृति दुर्ग जिले के तीनों जनपद पंचायतों एवं आसपास की सभी जिलों की महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। जागृति कृषि विभाग की आत्मा योजना और बिहान योजना में भी प्रशिक्षण दे रही हैं।
नेशनल लेवल के प्रशिक्षक के रूप में हुई चयनित- जागृति अब केवल प्रदेश में ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी अपने गांव मतवारी और दुर्ग जिले का नाम रोशन करने वाली हैं रूरल सेल्फ एम्प्लॉयमेंट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में प्रशिक्षण देने के लिए उनका चयन नेशनल लेवल ट्रेनिंग के लिए भी हुआ है।
मशरूम की डिमांड इतनी है कि लोग इंतजार करते हैं, सोशल मीडिया के माध्यम से करती हैं प्रचार–  गायत्री स्व सहायता समूह द्वारा उत्पादित मशरूम की इतनी डिमांड है कि लोग कई दिन तक इंतजार करते हैं। समूह द्वारा ओयस्टर मशरूम का उत्पादन किया जाता है जुलाई 2020 से प्रोटीन रिच पिंक ओयस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया है। जिसकी और भी डिमांड है। हर दिन कम से कम 4 से 5 किलो मशरूम का उत्पादन होता है इस लिहाज से यदि 200 प्रति किलो का हिसाब लगाएं तो 800 से 1000 रुपए की आमदनी ली जा सकती हैं।
मशरूम उत्पादन के साथ-साथ हर्बल फिनाइल हर्बल सोप डिटर्जेंट इत्यादि का उत्पादन भी करता है इनका समूह–  जागृति बताती हैं कि उन्होंने केवल एक काम तक खुद को सीमित नहीं रखा है मशरूम उत्पादन के अलावा उनका समूह हर्बल फिनायल ,डिटर्जेंट इत्यादि का उत्पादन भी कर रहा है। जिसकी अच्छी खासी डिमांड है। इनको अच्छे ऑर्डर भी मिल रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा आयोजित बिहान बाजार में भी गायत्री स्व सहायता समूह ने काफी अच्छी बिक्री की थी।